भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनचेतना यात्रा पर निकले भाजपा के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी जिस तरह से सुर्खियाँ बटोर रहे हैं! उससे इतना तो स्पष्ट है कि आडवानी अपने मक़सद में काफी हद तक सफल रहे हैं ! नहीं - नहीं इसका ये मतलब कतई नहीं कि आडवानी की इस यात्रा से कांग्रेस डर गई है या इससे भ्रष्टाचार के प्रति जन चेतना जागृत होगी (क्योंकि देश में भ्रष्टाचार के प्रति तो पहले से ही काफ़ी जनचेतना है) ! ना ही आडवानी की इस यात्रा से भ्रष्टाचार ख़त्म हो होगा ! मकसद में कामयाब होने का मतलब है कि आडवानी खुद की उपयोगिता सिद्ध करने और अपने आप को प्रासंगिक बनाएं रखने में सफल रहे हैं! आडवाणी की ये यात्रा किसी और के लिए नहीं बल्कि खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ में बनायें रखने के लिए है! पार्टी में अपनी उपयोगिता को बनाये रखने के लिए है! आडवानी इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि सियासत में कब क्या हो जाए, ये कोई नहीं जानता! कभी भी वो अवसर आ सकता है जिसकी हसरत वर्षों से उनके दिल में है! आडवानी खुले तौर पर भले ही इसे स्वीकार न करें लेकिन एक बार देश का प्रधानमंत्री बनने के उनके सपने से सभी वाकिफ़ हैं! और वो सपना अभी भी पल रहा है! और अपने इसी सपने को साकार होता देखने की हसरत ने उन्हें एक बार फिर से रथ यात्रा निकानले पर मजबूर कर दिया!
कहने को तो बीजेपी में प्रधानमंत्री पद के कईं दावेदार हैं! लेकिन सच यही है कि आडवाणी की राजनीतिक हैसियत के आगे उनका क़द बेहद छोटा है! इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता कि आडवाणी ने बिहार से जब अपनी जन चेतना यात्रा शुरू की थी तो उस वक़्त उनके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी थे! ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने बिहार विधान सभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार करने से रोक दिया था! हालात आज भी कुछ अलग नहीं है! अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि जिस नरेन्द्र मोदी को बीजेपी प्रधानमंत्री के पद के लिए सबसे उपयुक्त दावेदार मानती है क्या वो मोदी, राजग ( भाजपा और सहयोगी दल, दोनों ) का भी सबसे उपयुक्त और पसंद का दावेदार होगा? इसका उत्तर है 'नहीं'! कम से कम नीतीश कुमार की पार्टी मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए समर्थन नहीं करेगी! वहीं आडवानी के साथ ऐसा बिल्कुल भी नहीं है! यहाँ पर ये बात भी गौर करने लायक़ है कि जनचेतना यात्रा लेकर जब आडवानी उड़ीसा (अब ओडिशा) पहुंचे तो उन्होंने वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के ख़िलाफ़ एक भी शब्द नहीं कहा! सियासी हलकों में ये चर्चा ज़ोरों पर है कि कहीं आडवानी, बीजेपी और बीजेडी गठबंधन को फिर से पुनर्जीवित तो नहीं करना चाहते हैं ! इस बात की पुष्टि इससे भी होती है कि वाजपेयी सरकार के दौरान नवीन पटनायक आडवाणी को सबसे ज्यादा प्रिय थे! ज़ाहिर है आडवानी, नवीन पटनायक की सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर टिप्पड़ी कर नवीन पटनायक की नाराजगी नहीं मोल लेना चाहते थे! हो सकता है कि अडवाणी की हसरतों को पूरा करें के लिए नवीन की ना जाने कब ज़रुरत पड़ जाए!
देश के राजनीतिक हालात फिलहाल तो मध्यावधि चुनावों की और बिल्कुल भी संकेत नहीं कर हैं ! फिर भी यदि किसी वजह से देश में ऐसे हालात बनते हैं तो बीजेपी या कम से कम आडवानी को ये पूरा यक़ीन है कि बीजेपी का प्रदर्शन पिछले लोक सभा चुनवों के मुकाबले काफ़ी बेहतर रहेगा! इस यक़ीन की एक जायज़ वज़ह भी है! वर्तमान में संप्रग सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में बहुत गुस्सा है! ख़ासकर भ्रष्टाचार को लेकर! और ये गुस्सा देशव्यापी है! ज़ाहिर है बीजेपी को चुनावों में इस गुस्से का लाभ मिलने की पूरी संभावना है! और अगर ऐसा होता है तो राजग की और से प्रधानमंत्री पद के लिए आडवानी से ज़्यादा सर्वमान्य नेता के तौर पर किसी और के नाम पर सहमति बनना बहुत ही मुश्किल होगा! खुद आडवानी भी इस तथ्य से अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं ! इसलिए पहले भी कई रथ यात्रा निकाल चुके 84 साल के आडवानी ने एक बार फिर से भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनचेतना के नाम पर रथ यात्रा निकालने का साहस दिखया है और अपने विरोधियों के सामने वो चुनौती पेश की है जिसकी काट फिलहाल तो ना मोदी के पास है और ना ही RSS के!
जो भी इस अंग्रेजी और घटिया कांग्रेसी से बचने का आज के समय में मात्र एक सहारा यही है|
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पोस्ट बधाई भाई
ReplyDeleteपहली तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धक टिप्पणी देने के लिए !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है आपने ! बेहतरीन पोस्ट!
आने वाला समय ही बताएगा क्या होता है..... सटीक रेखांकन किया आपने
ReplyDeleteराजनीति के दाँव पेंच ऐसे ही होते हैं !
ReplyDeleteसही विश्लेषण किया है आपने !
आभार !
आपके पोस्ट पर आना अच्छा लगा
ReplyDeleteजहाँ तक इन यात्राओं कि बात है
तो ये सब तो राजनातिक दाव पेच है
राजनीति में हर नेता उच्च पद तक पहुंचना चाहता है अब आडवानी जि यदि दिल में प्रधान मंत्री बनने का सपना पाले भी बैठे है तो इसमें बुराई क्या है?
ReplyDeleteरही बात रथ यात्रा की हर नेता आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करता है आडवानी भी अपने लिए कर रहे है तो इसमें नया कुछ नहीं!!
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Kath ki handi baar baar chadhane ki koshish ke siway kuch bhi nahi.. :)
ReplyDeleteदम तो है भैया तर्क में वैसे भी कोंग्रेस का तो अब बनता धार होना ही है जब कमान मंद बुद्धि बालक के हाथ में देने को कोंग्रेस के चिरकुट दिनरात प्रयासरत है जब दिग्गी कोंग्रेस के कथित चाणक्य बने हुए हैं तथा दिन रात मंद मति को दीक्षा दे रहें हैं .
ReplyDeleteदम तो है भैया तर्क में वैसे भी कोंग्रेस का तो अब बंटा धार होना ही है जब कमान मंद बुद्धि बालक के हाथ में देने को कोंग्रेस के चिरकुट दिनरात प्रयासरत है जब दिग्गी कोंग्रेस के कथित चाणक्य बने हुए हैं तथा दिन रात मंद मति को दीक्षा दे रहें हैं .
ReplyDeleteराजनीति में तो ये सब लगा ही रहता है,सरकार आती जाती रहती है ये कोई नई बात नहीं है,हाँ जो भी संघर्स करेगा वह आगे आएगा....
ReplyDeleteबस मोदी को आगामी प्रधानमंत्री के रूप में पार्टी प्रोजेक्ट कर दे देश की तकदीर बदल जाए और भाजपा की भी
ReplyDeleteक्या कहें इस बारे में.चलिए अपने एक दोहे के ज़रिये अपनी बात कह देता हूँ.
ReplyDeleteदोहा है:-
किस को छोड़ें और हम,किस पर करें यक़ीन.
राजनीति में दिख रहे ,सभी आचरण हीन.
वैसे भी कांग्रेस से ऊब चुके हैं लोग , तो एक बार बीजेपी को दुबारा परखने में क्या बुराई है ? और जनता बेचारी जाये भी तो कहाँ ?
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