१६ नवंबर२०११ को मथुरा की जिला अदालत ने 20 साल पुराने तिहरे हत्याकांड में 8 लोगों को ओनर किलिंग का दोषी पाते हुए फांसी और २7 को उम्रकैद की सजा सुनाई ! मथुरा जिला अदालत का ये फैसला अपने आप में एतिहासिक है! और इसकी प्रशंसा की जानी चाहिए!(हालाँकि भारत में समाज का एक वर्ग फांसी की सजा के हक़ में नहीं है) भारत में ये पहला मामला है जिसमे ८ लोगों को फांसी की सजा सुनाई गई है! और २७ को उम्रकैद! ज़ाहिर है अदालत के इस फैसले की धमक लम्बे समय तक सुनाई देगी! ये फैसला इंसानियत के दुश्मनों के लिए एक सबक है! मथुरा की जिला अदालत के इस एतिहासिक फैसले के परिपेक्ष्य में उम्मीद की जानी चाहिए कि कम से कम अब तो लोग कानून के डर से ही सही , कभी इज्ज़त के नाम पर तो कभी किसी और बहाने से प्रेमी जोड़ों की जान नहीं लेंगे! ये फैसला ऐसे लोगों के एक सबक होना चाहिए!
इस मामले में कुल ५4 लोगों को आरोपी बनाया गया था! जिसमें अभी तक १3 लोगों की मौत भी हो चुकी है! और तीन नाबालिगों का ट्रायल किशोर वार्ड में विचाराधीन है! ये मुक़दमा पुरे बीस साल तक चला! मामला कुछ इस तरह था! २७ मार्च १९९१ को मथुरा जिले के बरसाना में पंचायत के फैसले के बाद ग्रामीणों ने एक युवती व दो युवकों को पेड़ पर लटका कर फांसी देने के बाद उनके शव जला दिए थे! अपराध बेहद संगीन था ! फांसी देने से पहले तीनो को पूरे गाँव के सामने बुरी तरह अपमानित किया, प्रताड़ित किया था! वहशीपन की सारी हदें इस मामले में पार की गई थी! ज़ाहिर है ऐसे अपराध को अंजाम देने वाले को लिए फांसी और उम्रकैद से कम कोई सजा हो ही नहीं सकती थी!
इस मामले में कुल ५4 लोगों को आरोपी बनाया गया था! जिसमें अभी तक १3 लोगों की मौत भी हो चुकी है! और तीन नाबालिगों का ट्रायल किशोर वार्ड में विचाराधीन है! ये मुक़दमा पुरे बीस साल तक चला! मामला कुछ इस तरह था! २७ मार्च १९९१ को मथुरा जिले के बरसाना में पंचायत के फैसले के बाद ग्रामीणों ने एक युवती व दो युवकों को पेड़ पर लटका कर फांसी देने के बाद उनके शव जला दिए थे! अपराध बेहद संगीन था ! फांसी देने से पहले तीनो को पूरे गाँव के सामने बुरी तरह अपमानित किया, प्रताड़ित किया था! वहशीपन की सारी हदें इस मामले में पार की गई थी! ज़ाहिर है ऐसे अपराध को अंजाम देने वाले को लिए फांसी और उम्रकैद से कम कोई सजा हो ही नहीं सकती थी!
भारत में इज्ज़त के नाम पर जान लेने का सिलसिला पिछले कुछ सालों से काफी सुर्खियाँ बटोर रहा है! अगर हम हाल के वर्षों में नज़र डाले तो तस्वीर एकदम साफ़ दिखाई देगी! हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आज भी इज्ज़त के नाम पर प्रेमी युगलों की जान लेने की घटनाएँ आम हैं ! इन प्रदेशों से एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमे प्रेमी जोड़ों से जीने का हक उनके परिवार वालों और रिश्तेदारों ने सिर्फ इसीलिए छीन लिया क्योंकि वो अपने पसंद के व्यक्ति को जीवन साथी चुनना चाहते थे! एक सभ्य समाज में सिर्फ प्रेम करने के लिए किसी की जान ले ली जाए इसे कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता!
इसीलिए सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर इज्ज़त के नाम पर जान लेने की ये मध्यकालीन परम्परा कब रुकेगी! क्या परिवार की इज्ज़त, इंसान की जान से ज्यादा कीमती है! क्या हमें किसी इंसान की जान सिर्फ इसीलिए लेने का हक़ कि वो अपनी ज़िन्दगी का फैसला खुद करना चाहता है? जबकि वो अपनी ज़िन्दगी के फैसले खुद करने लायक़ भी है! सवाल बहुत से है! लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही कि आखिर कब रुकेगा इज्ज़त के नाम जान लेने का ये सिलसिला?
हालाँकि एक अच्छी बात ये भी कि भारत का सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों को लेकर बेहद सख्त है! इसकी पुष्टि इसी साल अगस्त में दिए सुप्रीम कोर्ट के उस बयान से भी होती है जिसमें कहा गया था कि इज्ज़त के नाम पर जान लेने वालो को फांसी होनी चाहिए! मथुरा जिला अदालत के आज के फैसले को भी इसी बयान की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए! और उम्मीद की जानी की सम्मान के नाम पर प्रेमी युगलों की जान लेने वाले, कानून के डर से ही सही, बाज़ आएंगे!
इसे आनर किलिंग कहना कहीं से भी तार्किक नहीं लगता अपने ही प्यारे बच्चों को परिवार की कथित झूंठी शान और मान वास्तव में दंभ के पीछे जान ले लेना हद दर्जे की क्रूरता है .सामाजिक नपुंसकता और नामर्दी है .राजनेताओं का इस मुद्दे पर नत शिश्न बने रहना शर्मनाक है .
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