आबादी से आबाद था कभी जहां
आज हर तरफ वीराना है!
देखा था शहर बसाने का सपना
मगर सच तो बहुत डरावना है !
ये पीड़ा समूचे पहाड़ की है .....आधुनिकता की चकाचौंध और रोज़मर्रा की जरूरतों के आगे इंसान इतना बेबस है कि अपना सबकुछ छोड़ वो शहरों की तरफ भाग रहा है! दो वक़्त की रोज़ी- रोटी का इंतजाम करने के लिए युवा अपना गाँव , संगी साथी और माँ-बाप तक को छोड़ कर शहरों में अपना ठिकाना बनाना को लिए बेबस हैं !
उत्तराखंड के एक अलग राज्य बनने के समय पहाड़ों के आबाद होने की उम्मीद की गई! लेकिन राज्य बनने के बाद से अब तक ६० फीसदी आबादी के पलायन से तो यही संकेत मिलता है कि ऐसा बिलकुल भी नहीं हुआ
उत्तराखंड की पहचान यहाँ के पहाड़ हैं ...यहाँ के रीति रिवाज़ हैं , यहाँ के गाँव हैं ..लेकिन उन्स्की यही पहचान अब खतरे में है गाँव के गाँव खाली हो रहे हैं..पुरानी परम्पराएँ दम तोड़ रही हैं ! इसकी सबसे बड़ी वजह पलायन है! लोग अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए शहरों का रुख कर रहे हैं क्योंकि गाँव में वे मूलभूत सुविधाओं से भी महरूम रहते हैं! इसके लिए हर कोई सरकार को ज़िम्मेदार मानता है! लेकिन सरकार को इससे से शायद कोई वास्ता नहीं है! सरकार गाँव के विकास के लिए योजनाएँ बनाती ज़रूर हैं लेकिन वो योजनाएं धरातल पर उतरने के बजाए सिर्फ कागजों पर ही सिमट कर रह जाती हैं !
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